जौड़ियां में 1953 प्रजा परिषद के शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई

जौड़ियां में 1953 प्रजा परिषद के शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई

जम्मू, 31 जनवरी (न्यूज़ एजेंसी)। जम्मू संभाग के जौड़ियां में प्रजा परिषद मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में 1953 प्रजा परिषद आंदोलन के शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई। ट्रस्ट के अध्यक्ष दलजीत सिंह चिब ने इसका नेतृत्व किया। एक विधान, एक निशान, एक प्रधान के संघर्ष में किए गए सर्वोच्च बलिदानों को सम्मानित करने के लिए समर्पित इस कार्यक्रम में कई प्रतिष्ठित हस्तियों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम में आरएसएस के प्रांत प्रचारक रूपेश कुमार मुख्य वक्ता थे जबकि अखिल भारतीय भूतपूर्व सैनिक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष ब्रिगेडियर बलबीर सिंह संब्याल ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। उपस्थित प्रमुख लोगों में जम्मू-कश्मीर भाजपा अध्यक्ष सत शर्मा, सनातन धर्म सभा के अध्यक्ष पुरुषोत्तम दधीचि, विधायक शाम लाल शर्मा और मोहन लाल भगत, पूर्व विधायक डॉ. कृष्ण लाल भगत, अतिरिक्त एसपी ग्रामीण बृजेश कुमार, बीएमओ अखनूर डॉ. सलीम और कृषि निदेशक डॉ. यश ए.एस. शामिल थे।

इस मौके पर स्वास्थ्य मेला और किसान मेला के साथ-साथ प्रजा परिषद आंदोलन पर एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया जिसका उद्देश्य लोगों को जागरूक करना और उन्हें सेवाएं प्रदान करना था। शहीदों को पुष्पांजलि अर्पित करते हुए रूपेश कुमार ने इतिहास और बलिदानों को याद रखने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा एक राष्ट्र जो अपनी जड़ों से दूर हो जाता है वह दुनिया के नक्शे से गायब हो जाता है। हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ने वालों के बलिदानों को लगातार याद रखना चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए। कुमार ने इस बात पर प्रकाश डाला कि 1953 का संघर्ष एक निर्णायक क्षण था जिसमें सात युवा देशभक्तों ने जम्मू और कश्मीर में तिरंगा फहराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। उन्होंने यह भी बताया कि अनुच्छेद 370 की छाया में महिलाओं, ओबीसी, पहाड़ी और एससी जैसे समुदायों को उनके अधिकारों से वंचित किया गया था और उनकी मुक्ति केवल राष्ट्रवादी ताकतों द्वारा वर्षों के संघर्ष के माध्यम से संभव थी। उन्होंने नए सिरे से प्रतिबद्धता का आह्वान करते हुए लोगों से पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) को पुनः प्राप्त करने और बलिदानों के समृद्ध इतिहास को भावी पीढ़ियों तक पहुंचाने की दिशा में काम करने का आग्रह किया।

सत शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त करने के लिए तीन पीढ़ियों ने 70 से अधिक वर्षों तक संघर्ष किया और बलिदान दिया। उन्होंने 31 जनवरी, 1953 के ऐतिहासिक क्षण को याद किया जब किसानों की एक बड़ी भीड़ ने तिरंगा लेकर क्रूर पुलिस कार्रवाई का सामना किया, जिसके कारण सात देशभक्त शहीद हो गए। उन्होंने लोगों से उनकी विरासत और राष्ट्रीय अखंडता के प्रति प्रतिबद्धता को बनाए रखते हुए उनके बलिदानों का सम्मान करने का आग्रह किया। पुरुषोत्तम दधीचि ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे सर्वोच्च बलिदान भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक सबक के रूप में काम करते हैं। उन्होंने बुजुर्गों को इन ऐतिहासिक आंदोलनों की कहानियों को साझा करके युवाओं में देशभक्ति की भावना जगाने के लिए प्रोत्साहित किया।

न्यूज़ एजेंसी/ राहुल शर्मा


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