राष्‍ट्रीय बाल आयोग के बाद अब एनएचआरसी के जरिए जिम्मेदारों को उनका कर्तव्‍य एवं कार्य याद दिलाएंगे प्र‍ियांक, राष्‍ट्रपति ने की नियुक्‍ति

प्रियांक कानूनगो एनएचआरसी के सदस्य नियुक्त

भोपाल, 23 दिसंबर (न्यूज़ एजेंसी)।मध्‍य प्रदेश के विदिशा से ताल्‍लुक रखनेवाले राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के पूर्व अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो की फिर संविधानिक पद पर रहते हुए शासन एवं प्रशासन के उनका दायित्‍व बोध कराने एवं जनहित में पूरी तरह समर्प‍ित होकर कार्य करने की प्रेरणा देने एवं अधिकार पूर्वक निर्देशित कर उनसे कार्य करवाने की एक नई यात्रा शुरू हो गई है। इस बार वे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) में कार्य करते हुए नजर आएंगे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हाल ही में उनकी एचआरसी सदस्‍य के रुप में नियुक्‍ति की है, जिसे लेकर सोमवार को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के किए गए ट्वीट से हुआ है।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 4(1) के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए कानूनगो को एनएचआरसी का सदस्य नियुक्त किया है । कानूनगो की नियुक्ति उनके पदभार ग्रहण करने की तिथि से प्रभावी होगी। इस संबंध में कानूनगो ने भी पुष्टि कर दी है। उल्‍लेखनीय है कि प्रियांक कानूनगो ने एनसीपीसीआर के अध्यक्ष रहते हुए कई बड़े निर्णय और कार्य किए थे, जिसका कि असर आनेवाले कई सालों तक भारत में देखने को मिलता रहेगा। इससे पहले कभी राष्‍ट्रीय बाल आयोग को बच्‍चों के हित में मुखर होते हुए नहीं देखा गया जितना कि इनके अध्‍यक्षीय कार्यकाल में एनसीपीसीआर ने कार्य किया।

कानूनगो ने न केवल ईसाई मिशनरियों और मदरसों में बच्चों को शिक्षा के अधिकार से वंचित करने के मामले को उठाया बल्‍कि हर प्रकार के बच्‍चों से जुड़े मामलों का त्‍वरित समाधान हो, इसके लिए शासन-प्रशासन को टाइट करने का काम किया। यही वजह रही कि पॉक्‍सो, देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले (सीएनसीपी) बच्‍चों के हित में बड़ा कार्य पिछले वर्षों में देश भर में होते हुए देखा गया। इसके साथ ही उन्‍होंने तमाम जिलों में केंद्र की बच्‍चों के हित चलनेवाली योजनाओं को लेकर हितकारक एवं शिकायत निवारण शिविर लगवाकर तुरंत ही स्‍थानीय स्‍तर पर बाल अधिकार संरक्षण से जुड़ी शिकायतों और समस्याओं का निराकरण करने एवं उन्‍हें सुविधाएं दिलवाने के लिए बड़ा कार्य लगभग एक दशक आयोग में रहकर किया।

इस संबंध में प्रियंक कानूनगाे का कहना भी रहा है कि आनाथ बच्चे, गंभीर बीमारियों से जूझ रहे बच्चे, बलात्कार जैसे यौन शोषण का शिकार बच्चे, ट्रैफिकिंग, दासता, बाल श्रम में लगे हुए बच्चे, मानसिक विकारों से जूझ रहे बच्चे, स्कूल जाने का रास्ता खोज रहे बच्चे, वो लडकियाँ जिनको बराबरी का हक हासिल नहीं हैं, उनके कष्टों को जब हम देखते हैं और कोशिश करते हैं कि उनके कष्टों के सहभागी बनकर उस पीड़ा को कम करने का प्रयास करें। यह कार्य व्यक्तिगत रूप से आपको बदल कर रख देगा और यही मेरे जीवन का अनुभव है जो जीवन भर मेरे साथ चलेगा। मेरा स्वभाव बदला, मेरा व्यक्तित्व बदला गया। उन्होंने अपनी इस नई जिम्मेदारी काे लेकर कहा है कि अब एनएचआरसी के सदस्य के रूप में, मैं अपेक्षित जिम्मेदारियों को पूरा करने का प्रयास करूंगा।

गौरतलब है कि देश में एनएचआरसी की स्थापना 12 अक्टूबर, 1993 को हुई थी। जिस कानून के तहत एनएचआरसी की स्थापना की गई है, वह मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम (पीएचआरए), 1993 है, जिसे मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2006 द्वारा संशोधित किया गया है। यह पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप है, जिसे अक्टूबर 1991 में पेरिस में आयोजित मानवाधिकारों के प्रचार और संरक्षण के लिए राष्ट्रीय संस्थानों पर पहली अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में अपनाया जाकर 20 दिसंबर, 1993 के अपने विनियम 48/134 द्वारा संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा इसका समर्थन किया गया।

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी


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