नेपाल के चुनावी कानून में फेरबदल कर बहुदलीय व्यवस्था को खत्म करने की योजना 

निर्वाचन आयोग

काठमांडू, 09 जनवरी (न्यूज़ एजेंसी)। नेपाल में सरकार के कहने पर निर्वाचन आयोग ने एक ऐसा कानून प्रस्तावित किया है, जिससे देश में अगले चुनाव से संसदीय निर्वाचन प्रक्रिया में सिर्फ कांग्रेस और एमाले के ही शामिल रहने की पूरी संभावना है। निर्वाचन आयोग के प्रस्ताव पर गृह मंत्रालय ने हरी झंडी दिखाते हुए इसे कानून मंत्रालय के पास भेज दिया है।

मौजूदा समय में नेपाल की सरकार में दो सबसे बड़ी पार्टियां नेपाली कांग्रेस और नेकपा एमाले शामिल हैं। दो विपरीत ध्रुव के दलों की सरकार बनने के बाद देश में राजनीतिक स्थिरता के नाम पर बहुदलीय व्यवस्था को ही खत्म करने की योजना पर काम हो रहा है। कानून मंत्री अजय चौरसिया ने गुरुवार को बताया कि उनके पास गृह मंत्रालय से चुनाव संबंधी कानून परिवर्तन के लिए एक प्रस्ताव आया है, जिस पर आज विशेषज्ञों की बैठक बुलाई गई है। कानून मंत्री चौरसिया के मुताबिक प्रस्तावित कानून में राजनीतिक दलों की मान्यता के लिए मतों के प्रतिशत में बढ़ोतरी की गई है। सरकार के इस प्रस्ताव को देश में बहुदलीय व्यवस्था को समाप्त कर द्विदलीय व्यवस्था लागू करने के रूप में देखा जा रहा है।

दरअसल, अभी तक संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक संघीय संसद के चुनाव में कुल मतदान के न्यूनतम तीन प्रतिशत और प्रदेश के चुनाव में डेढ़ प्रतिशत मत लाने वाले पार्टियों को ही राजनीतिक दल की मान्यता मिलती है। ऐसे दल को ही सिर्फ समानुपातिक वोट के आधार पर सीटें आवंटित की जाती हैं। अब निर्वाचन आयोग के प्रस्ताव में संघीय चुनाव में तीन प्रतिशत को बढ़ाकर पांच प्रतिशत कर दिया गया है और प्रदेश के चुनाव में डेढ़ प्रतिशत को बढ़ाकर तीन प्रतिशत किया गया है। यानी अगर यह कानून परिवर्तन हो जाता है तो नेपाल में दो या तीन दल ही बचेंगे, जिनको मान्यता मिलेगी।

प्रमुख निर्वाचन आयुक्त दीपक थपलिया का कहना है कि सरकार की तरफ से मिले निर्देशों के बाद ही उनकी तरफ से यह प्रस्ताव गृह मंत्रालय को भेजा गया था। अगर कानून मंत्रालय की तरफ से इस प्रस्ताव को स्वीकार करके कैबिनेट में भेज दिया जाता है तो वहां से पास कर इसे संसद से सामान्य बहुमत से इस कानून को पास कराया जा सकता है।

पूर्व प्रमुख निर्वाचन आयुक्त अयोधि प्रसाद यादव का तर्क है कि यदि इस कानून में संशोधन हो जाता है तो सिर्फ बड़ी दो पार्टियां ही देश में रह जाएंगीं और देश के पिछड़े वर्ग सीमांतकृत वर्गों की आवाज संसद तक नहीं पहुंच पाएगी।

सर्वोच्च अदालत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश सुशीला कार्की का भी मानना है कि देश में दो सबसे बड़ी पार्टी मिल कर सत्ता चला रही हैं और अपने विरोधी दलों का अस्तित्व ही समाप्त करने के लिए बहुदलीय व्यवस्था को अंत करने पर तुली हुई हैं।

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न्यूज़ एजेंसी/ पंकज दास


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