कर्नाटक के कोप्पल ज़िला एवं सत्र न्यायालय ने मारुकुंबी गांव में दलित समुदाय के खिलाफ 2014 में हुई जातीय हिंसा के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। न्यायालय ने 98 दोषियों को आजीवन कारावास और पांच अन्य को साधारण कारावास की सजा दी है। न्यायाधीश सी चंद्रशेखर के 172 पन्नों के फैसले में यह कहा गया कि यह घटना सामान्य भीड़ हिंसा नहीं, बल्कि जातीय हिंसा थी, जिसमें विशेष रूप से अनुसूचित जाति के लोगों को निशाना बनाया गया।
इस घटना की शुरुआत तब हुई थी जब मंजूनाथ नामक व्यक्ति, जो दलित समुदाय से थे, फिल्म देखकर लौटे और उन्होंने बताया कि सिनेमाघर में कुछ गैर-अनुसूचित जाति के लोगों ने उनसे मारपीट की। इसके बाद गैर-अनुसूचित जाति के लोग एकत्र होकर दलित कॉलोनी पर हमला करने लगे। इस दौरान कई घरों और दुकानों में आग लगा दी गई और संपत्ति को नष्ट किया गया।
घटना के दोषियों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 की धारा 3(2)(iv) के तहत सजा दी गई है, जिसमें अनुसूचित जाति या जनजाति की संपत्ति को आग या विस्फोटक से नुकसान पहुंचाने पर आजीवन कारावास और जुर्माना का प्रावधान है।
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