प्रयागराज, 12 दिसंबर (न्यूज़ एजेंसी)। फर्जी संतों के खिलाफ पाबंदी लगनी चाहिए। दान में मिलने वाले धन का उपयोग सार्वजनिक एवं जनकल्याण के कार्यों में खर्च होने चाहिए। यह बात गुरुवार को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि संतों की परम्परा अलग होती है। किसी भी संत का परिवार से कोई संबंध नहीं होता है। सभी अखाड़ों में यही परम्परा चली आ रही है। चाहे वह शैव सम्प्रदाय, वैष्णव सम्प्रदाय और उदासी सम्प्रदाय हो, अखाड़ों में इसी परम्परा के आधार पर यदि पद रहते हुए परिवार से सम्पर्क बनाया तो उसे पदमुक्त कर दिया जाता है। उन्होंने बताया कि दान में मिलने वाले धन का उपयोग जनकल्याण और सार्वजनिक कार्यों में किया जाना चाहिए। दान के पैसे का प्रयोग अपने पत्नी एवं बच्चों को पालने के लिए नहीं करना चाहिए। संत बनने से पूर्व उज्यहवन संस्कार होता है। इसका अर्थ है कि जीते जी अपना और अपने परिवार का पिंड दान करना। यह संस्कार करने के बाद उस संत का संबंध परिवार से पूरी तरह से समाप्त हो जाता है। इसके बाद से वह जनकल्याण एवं सनातन धर्म के लिए कार्य करता है। वर्तमान में ऐसी स्थिति हो गई है कि लोग परिवार के भरण-पोषण के लिए छोटे छोटे बच्चों को प्रवचन करा रहे हैं, यही नहीं कुछ ऐसे भी गेरुआ वस्त्र धारण कर परिवार होते हुए भी अपने आपको संत बताकर धनार्जन कर रहे हैं। यह सही नहीं है,इस पर रोक लगनी चाहिए।
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न्यूज़ एजेंसी/ रामबहादुर पाल
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