यूनीसेफ स्थापना दिवस (11 दिसंबर) पर विशेष
-डॉ. रमेश ठाकुर
बाल कल्याण की बात हो या बाल अधिकारों की रक्षा, दोनों में प्रहरी की भूमिका निभाती है ‘यूनिसेफ’। यूनिसेफ का नाम सुनते ही बाल कल्याण के क्षेत्र में किए जा रहे संस्था के प्रयासों का ध्यान आता है। आज ‘विश्व यूनिसेफ दिवस’ है। एक ऐसी संस्था जो संसार के 190 देशों के दुर्गम स्थानों पर पहुंच कर बाल अधिकारों की हिमायत के लिए मजबूती से लड़ती है। बाल कल्याण की सुविधाएं विश्व के प्रत्येक जरूरतमंद, कमजोर और वंचित बच्चों तक पहुंचे, इसके लिए यूनिसेफ की टीमें चौबीसों घंटे ग्रांउड जीरो पर तैनात रहती हैं।
यूनिसेफ का मतलब होता है ‘संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष’ जिसका आरंभ 11 दिसंबर, 1946 को ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा’ द्वारा किया गया था। शुरूआती समय में संस्थान में मात्र 43 देश शामिल हुए लेकिन कुछ वर्षों बाद ये संख्या 100 पार कर गई। आज इस संस्था के साथ 190 देश जुड़े हुए हैं। संस्था से जुड़ने वाले देशों की संख्या में धीरे-धीरे बढ़ोतरी हो रही है। यूनिसेफ के 5 लाख प्रतिनिधि इस समय पूरी दुनिया में कार्यरत हैं। वहीं, भारत में 18 हजार के करीब कर्मचारी दुर्गम स्थानों पर बाल कल्याण के क्षेत्र में सेवाएं दे रहे हैं। बाल तस्करी की रोकथाम में इस संस्था की अलग टीमें कार्य करती हैं। भारत में रोजाना करीब 69,000 बच्चे पैदा होते हैं। उन सभी नौनिहालों के स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और बाल संरक्षण में यूनिसेफ इंडिया बेहतर कदम उठाने को संकल्पित है। इस समय यूनिसेफ की टीमें युद्धग्रस्त यूक्रेन-रूस, ईरान-इराक, अफगानिस्तान जैसे देशों जुटी हुई हैं। इन देशों के अभावग्रस्त बच्चों के पालन-पोषण के अलावा इन बच्चों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में संस्था काम कर रही है।
समय के साथ यूनिसेफ़ ने अपनी कार्यशैली में बदलाव किए। पहले इस संस्था का काम सिर्फ बाल अधिकारों की रक्षा के क्षेत्र में था। बाद में बच्चों के जीवन में बेहतरी के क्षेत्र में भी संस्था ने अपने कार्यों का विस्तार किया। फिलहाल यूनिसेफ की टीमें माताओं और नवजात शिशुओं के लिए एचआईवी की रोकथाम और उपचार, पर्याप्त पानी, स्वच्छ वातावरण, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, कौशल विकास, बाल स्वास्थ्य व पोषण जैसे क्षेत्रों में कार्यरत हैं। भारत के नजरिए से यूनिसेफ़ को देखें तो वर्ष 1949 में मात्र तीन सदस्यीय स्टाफ़ ने यहां काम शुरू किया। संस्था ने साल 1952 में दिल्ली में अपना कार्यालय स्थापित किया। वर्तमान में भारत के 16 राज्यों में इसके कार्यालय हैं, जहाँ से बाल कल्याण व बाल अधिकारों से जुड़ी योजनाओं को अमलीजामा पहनाते हैं। भारत में इनका प्रतिनिधित्व सिंथिया मैककैफ्रे करती हैं जिनकी अक्टूबर 2022 में नियुक्ति हुई थी। भारत सरकार अपने बजट से बड़ी रकम इनको सालाना आंवटित करती है ताकि देश के दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले वो बच्चे भी इनके जरिए शिक्षा की मुख्यधारा से जुड़ सकें, जो सरकार की नजरों से छूट जाते हैं। 2018 में यूनिसेफ ने ’एवेरी चाइल्ड अलाइव’ नाम से अंतरराष्ट्रीय अभियान की शुरुआत की जिसके अनुसार प्रत्येक मां और नवजात शिशु के लिए सस्ती एवं गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग और उनकी आपूर्ति करने के प्रयासों की शुरुआत करनी थी। उस अभियान ने जबरदस्त सफलता हासिल की।
यूनिसेफ का मुख्यालय, न्यूयॉर्क में स्थापित है। संस्था का उद्देश्य संसार भर के बच्चों को सुगम जीवन, उन्हें आगे बढ़ाने और अपनी क्षमता का विकास कराने का अधिकार मुहैया कराना है। वर्ष 2021 में भारत में यूनिसेफ की सेवाओं के 75 वर्ष पूरे हुए। तब, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी यूनिसेफ और भारत के सहयोग के साक्षा प्रयासों की सराहना की। भारत सरकार भी चाहती है कि प्रत्येक बच्चे का स्वास्थ्य बेहतर हो, उन्हें सुरक्षा और खुशहाली मिले। इसके लिए भारत सरकार भी कोई कसर नहीं छोड़ती। यूनिसेफ के लोग इस बात को विभिन्न वैश्विक मंचों पर कई बार दोहरा चुके हैं कि भारत सरकार से संस्था को भरपूर सहयोग मिलता रहा है।
इस समय 150 देशों में यूनिसेफ के कार्यालय, 34 राष्ट्रीय समितियां जो मेजबान सरकारों के साथ विकसित कार्यक्रमों के माध्यम से मिशन आगे बढ़ाते हैं। यूनिसेफ को सार्वजनिक क्षेत्र के तीन सबसे बड़े भागीदार अमेरिका, जर्मनी और विश्व बैंक अधिकांश पैसा देते हैं। बीते दो दशकों में विश्व भर में बच्चों के जीवित रहने के दर में खासी वृद्धि देखी गई। 2016 में दुनियाभर में अपने 5वें जन्मदिन से पहले मर जाने वाले बच्चों की संख्या आधी होकर 56 लाख तक रह गई। इसके बावजूद नवजात शिशुओं के लिए प्रगति धीमी रही है। पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु में, जन्म के पहले महीने में ही मर जाने वाले शिशुओं की संख्या 46 प्रतिशत है। जागरूकता के चलते इन आंकड़ों में अब सुधार हुआ है। यूनिसेफ के ऐसे प्रयास निरंतर जारी हैं, इसमें आम जनों को भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए। सरकार और समाज के संयुक्त प्रयासों से अभियान को न सिर्फ संबल मिलेगा बल्कि और तेज गति भी प्रदान मिलेगी।
(लेखक, केंद्र सरकार की बाल कल्याण समिति ‘निपसिड’ के सदस्य हैं।)
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न्यूज़ एजेंसी/ संजीव पाश
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