गिरीश्वर मिश्र
आमतौर पर बुढ़ापा को अशक्तता, रोग, व्याधि और दुर्बलता आदि के कारण जीवन का सबसे भयावह दौर माना जाता है। परिवार की संरचना में बदलाव और भागदौड़ भरी ज़िंदगी में बुढ़ापे की मुश्किलें और बढ़ जाती हैं। परंतु जीवन शैली में सुधार, दृष्टिकोण में सकारात्मकता, सावधानी बरतने और सहयोग लेने से इस दुखदायी अवधि को बहुत हद तक एक भाग्यशाली उम्र के रूप में बदला जा सकता है। जीवन के नियम आपके अपने हाथ में हैं इसलिए अच्छी तरह जिएँ और सब कुछ शांति से स्वीकार करें।
यह भी उल्लेखनीय है कि स्वास्थ्य सुविधाओं और खानपान में जरूरी पोषक तत्वों पर ध्यान देने के साथ जीवन की प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) निश्चित रूप से बढ़ी है। बुढ़ापे के डर और उसे दूर रखने के उपाय की ओर अब लोग बहुत ध्यान देने लगे हैं। कुछ दिनों पहले जापान के एक मनोचिकित्सक हिडेकी वाडा ने 80-ईयर-ओल्ड वॉल नामक की एक रोचक पुस्तक प्रकाशित की जो बड़ी लोकप्रिय हुई है और पाठकों के बीच तहलका मचा दिया है। अपने तीन दशकों से कुछ ज्यादा लंबे चिकित्सकीय जीवन में उन्होंने कई हज़ार रोगियों का सफल उपचार किया। यह पुस्तक अच्छे स्वास्थ्य के साथ शतायु होने के गुर बताती है। गौरतलब है कि जापान में “औसत स्वस्थ जीवन प्रत्याशा” पुरुषों के लिए 72.68 वर्ष और महिलाओं के लिए 75.38 वर्ष आंकी गई है। औसत जीवन प्रत्याशा की बात करें तो यह जापानी पुरुष के लिए 81.64 वर्ष और महिलाओं के लिए 87.74 वर्ष है। यदि औसत जीवन प्रत्याशा में से औसत स्वस्थ जीवन प्रत्याशा का मूल्य घटा दें तो पुरुषों के पास लगभग 9 वर्ष और महिलाओं के पास लगभग 12 वर्ष का समय बचता है। यही वह ख़ास अवधि है जब एक बुजुर्ग को दूसरों द्वारा देखभाल की ज़्यादा ज़रूरत होती है। इस अवधि को कैसे कम किया जाए, इस प्रश्न का हल ढूँढ़ते हुए डॉ. वाडा ने कुछ मार्गदर्शक नियम और अभ्यास खोजे हैं। उनके सुझाव ऐसे हैं जिनसे बुढ़ापे को एक संतोषजनक और तृप्तिदायी अवधि में रूपांतरित किया जा सकता है।
डॉ. वाडा कहते हैं कि बुजुर्गों को बार-बार नींद की गोलियां नहीं लेनी चाहिए क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ नींद में कमी आना स्वाभाविक घटना है। जब सोना हो तब सो जाओ, जब उठना हो तब उठो, यह बुजुर्गों का विशेषाधिकार है। ऐसे ही कोलेस्ट्रॉल का स्तर भी कोई ज़्यादा चिंता की बात नहीं है, क्योंकि कोलेस्ट्रॉल शरीर के लिए प्रतिरक्षा कोशिकाओं के लिए ज़रूरी कच्चा माल होता है। जितनी अधिक मात्रा में ये कोशिकाएँ मौजूद होंगी, कैंसर का खतरा उतना ही कम होगा। इसके अलावा, पुरुष हार्मोन का एक हिस्सा कोलोस्ट्रॉल से बना होता है। यदि कोलेस्ट्रॉल का स्तर बहुत कम है, तो पुरुषों का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य डावाँडोल बना रहेगा। यही बात रक्तचाप के बारे में भी है। जब रक्तचाप लगभग 150 तक पहुँच जाता है तो रक्त वाहिकाएँ फट जाती हैं जो ख़तरनाक है। यह कुपोषित लोगों में होता है। लेकिन अब कुपोषण बहुत कम हो गया है इसलिए भले ही रक्तचाप 200 से अधिक हो, इससे रक्त वाहिकाएँ फटने की गुंजाइश काम हो गई है।
डॉ. वाडा ने अपने अनुभव और अनुसंधान से 80 वर्षीय लोगों के भाग्यशाली लोग बनने के अनेक रहस्यों को उजागर किया है। उनका पहला सुझाव हर स्तर पर सक्रियता बनाए रखने को लेकर है। बुजुर्गों को खूब चलना चाहिए, धूप सेंकनी चाहिए और ऐसे व्यायाम करने चाहिए जिनसे शरीर न अकड़े। उनको मनपसंद काम करना चाहिए। चाहे कुछ भी हो उनको हर समय घर पर पड़े नहीं रहना चाहिए। उन्हें कई बार थोड़ा-थोड़ा आहार लेते रहना चाहिए। आप जितनी बार चबाएंगे, शरीर और मस्तिष्क उतना ही ऊर्जावान रहेगा। आराम-आराम से आसानी से सांस लेनी चाहिए। जब किसी कारणवश चिढ़ लगे तो गहरी साँस लेना चाहिए। गर्मियों में एयर कंडीशनर का उपयोग करते हुए ज़्यादा से ज़्यादा पानी पीना चाहिए।
बुढ़ापे में लोगों में भूलने की समस्या पैदा होती है। यह समझना ज़रूरी है कि उम्र बढ़ने के कारण ऐसा नहीं होता बल्कि मस्तिष्क को लंबे समय तक उपयोग में न लाने से ऐसा होता है। बुजुर्गों को अधिक दवाएँ भी नहीं लेनी चाहिए। रक्तचाप और रक्त शर्करा-स्तर को जानबूझकर कम करने की ज़रूरत नहीं है। वे जो चाहें खाएं, थोड़ा स्थूलकाय होना ठीक है। अगर नींद नहीं आ रही है तो उसके लिये खुद को मजबूर न करें। बीमारी से अंत तक लड़ने के बजाय, उसके साथ सह-अस्तित्व में रहना बेहतर युक्ति है। खुश करने वाली चीज़ें करते रहना मस्तिष्क की गतिविधि को सुचारू बनाए रखने के लिए ज़्यादा ठीक साबित हुआ है। सीखना बंद करते हुए आदमी बूढ़ा होने लगता है। कार्य की आदतों को लेकर डॉ. वाडा का सुझाव है कि हर काम सावधानी से करना चाहिए। ऐसे लोगों से दूर ही रहना चाहिए जिनसे उनको नफरत हो। बहुत ज़्यादा या हर समय टीवी न देखें। खानपान में ताजा फल और सलाद का अधिक उपयोग लाभकर होता है।
परोपकार का जीवन दर्शन सबसे अच्छा है। इसलिए ऐसे काम करें जो दूसरों के लिए अच्छे हों। डॉ. वाडा की मानें तो प्रसिद्धि पाना ठीक है पर उसके लिए लालची नहीं होना चाहिए। आदमी के पास कुछ भी है वह बहुत अच्छा है और उसका आनंद उठाना चाहिए। जो परेशान करने वाली चीजें होती हैं, वे उतनी ही दिलचस्प होती हैं और अवसर देती हैं। चूँकि इच्छा दीर्घायु का स्रोत है इसलिए हमें आशावादी बने रहना चाहिए। बुढ़ापा तब भाग्यशाली उम्र बन जाता है। इसे अच्छी तरह जीने की ज़रूरत है। इत्मीनान से जीयें, बिना किसी हड़बड़ी के।
(लेखक, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति हैं।)
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न्यूज़ एजेंसी/ संजीव पाश
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