आर.के. सिन्हा
अमेरिका में बसे लाखों भारतीय डोनाल्ड ट्रम्प के साथ हैं या कमला हैरिस के पक्ष में? अगर मीडिया पर आ रही खबरों पर यकीन करें तो कमला हैरिस को आज के दिन अधिक लोकप्रिय बताया जा रहा है। कमला की लोकप्रियता प्रतिदिन बढ़ती जा रही बताते हैं। भारत सरकार किसे विजयी देखना चाहती है? यह तय है कि जो भी जीतेगा भारत सरकार उसके साथ तालमेल बिठा कर काम करेगी ही! यह बात भारत-अमेरिका के गहरे द्विपक्षीय संबंधों की रोशनी में कही जा सकती है, जो लगातार मजबूत हो रहे हैं।
एक बात जान लें कि अमेरिका में रहने वाले भारतीयों के एकमुश्त वोट कमला हैरिस को नहीं मिलेंगे, कुछ वोट तो बटेंगे ही! कुछ वोट ट्रम्प के खाते में भी जाएंगे। पर कमला हैरिस को भारतीय अपना तो मानते हैं। कमला हैरिस की मां श्यामला गोपालन, तमिलनाडु के एक कुलीन ब्राह्मण परिवार से थीं। यह समाज अपनी बेटियों की शिक्षा पर बहुत ध्यान देता है। इसलिए इस परिवार ने श्यामला गोपालन को अपने सपनों को पूरा करने के लिए नई दिल्ली जाने की अनुमति दी। जहां उन्होंने दिल्ली युनिवर्सिटी में पढ़ाई की। श्यामला के पिता पीवी गोपालन सरकारी सेवा में ही थे और मां सफल गृहणी थीं। गोपालन जी सरकारी दफ़्तर में टाइपिस्ट थे और अपनी लगन और ईमानदारी के सहारे पदोन्नति पाते रहे। वह अपनी नौकरी के सिलसिले में मद्रास, नई दिल्ली, मुंबई और कोलकाता में रहे। डीयू से 19 साल की उम्र में डिग्री लेने के बाद कमला हैरिस की मां श्यामला ने उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए अमेरिका का रुख किया। उन्होंने अमेरिका में एक अफ्रीकी मूल के शख्स से शादी की, जिसका परिवार कैरिबियाई देश जमैका में बस गया था। इस लिहाज से देखा जाए तो कमला हैरिस को भारतीय और अफ्रीकी कहीं ना कहीं अपने से जुड़ा मानते हैं।
उधर, ट्रम्प का भी अपना ख़ास जनाधार है। वह 2016-2020 के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति रहे हैं। ट्रम्प वह व्यक्ति भी हैं जिन्होंने यूक्रेन और गाजा में संघर्षों को समाप्त करने का वादा किया है, जो लेबनान तक फैल गया है। वह इसे लेकर कितने गंभीर हैं या वे इसमें कितना सफल होंगे, यह अनुमान का विषय है लेकिन कम से कम उन्होंने वादा तो किया ही है। राष्ट्रपति जो बाइडेन के विदेश मंत्री एंथोनी ब्लिंकन भी गाजा में चल रहे संघर्ष को खत्म करने के लिए अपने ढंग से कुछ काम कर रहे हैं। उम्मीद है कि इससे डेमोक्रेटिक पार्टी को मदद मिलेगी। लेकिन न तो बाइडेन और न ही कमला हैरिस ने अब तक गाजा में शांति लाने का कोई ठोस इरादा दिखाया है। ऐसे में क्या ट्रम्प की जीत विश्व शांति के लिए भी मतदाता अच्छी मानेंगें?
भारत-अमेरिका संबंध
अब जरा बात भारत-अमेरिका संबंधों की। ज़्यादातर राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इससे भारत-अमेरिका संबंधों पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ेगा कि व्हाइट हाऊस में ट्रम्प पहुंचते हैं या कमला हैरिस। भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंध बेहतर होते रहेंगे, यही अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विश्लेषक मानते हैं। दोनों देशों के संबंध उस दायरे से कहीं आगे जाते हैं, जब सत्ता परिवर्तन का असर संबंधों पर होता है। इन संबंधों में किसी पर्सनेल्टी का असर नहीं हो सकता। हां, दोनों देशों के नेताओं के निजी संबंधों से स्थिति और बेहतर हो सकती है। यह हमने नरेन्द्र मोदी और बराक ओबामा, फिर मोदी और डोनाल्ड ट्रम्प और उसके बाद मोदी और बाइडेन के समय देखा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह से अमेरिका के दो पूर्व राष्ट्रपतियों बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रम्प के साथ एक अलग पर्सनल केमिस्ट्री विकसित की थी, वैसी ही केमिस्ट्री उनकी राष्ट्रपति बाइडेन के साथ भी बनी। कुछ अस्वस्थ होने के बावजूद पिछले साल बाइडेन जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने नई दिल्ली आए। उसके बाद से उनकी भारतीय प्रधानमंत्री मोदी से आपसी और अंतरराष्ट्रीय मामलों पर अक्सर बातचीत होती रहती है।
एक बात और। अगर ट्रम्प फिर से अमेरिका के राष्ट्रपति बन जाते हैं तो संसार के इस्लामिक देशों के साथ वे किस तरह का संबंध बनाकर रखना चाहेंगे? वह पहली बार जब राट्रपति का चुनाव जीते थे तब सारा इस्लामिक संसार दुखी था। वह अपनी कैंपेन के दौरान बार-बार इस्लाम को लेकर बयान दे रहे थे। उन्होंने इस्लाम को अमेरिका विरोधी बताते हुए उनके अपने देश में प्रवेश पर पाबंदी लगाने की मांग तक दोहराई थी। हालाकि उन्होंने कहा था कि उनकी लड़ाई कट्टरपंथी मुसलमानों से है। लेकिन, इस बार वह संभल कर चल रहे हैं। डोनाल्ड ट्रम्प आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) के पनपने के लिए बराक ओबामा और हिलेरी क्लिंटन को जिम्मेदार मानते हैं। ट्रम्प के इस तरह के बयानों पर उन्हें अमेरिका के गैर-मुसलमानों का समर्थन मिला। ट्रम्प के इस दावे से सनसनी पैदा हो गई थी कि 11 सितंबर 2001 के हमलों के बाद दुनिया भर के मुसलमान जश्न मनाने के लिए ‘सड़कों पर उतर’ आए थे। उन्होंने कहा था कि अरब और अमेरिकी मुसलमानों ने आतंकी हमलों का जश्न मनाया था। ट्रम्प ने अपने देश में मुसलमानों की निगरानी करने के लिए डाटा बेस बनाने का भी वादा किया था। ट्रम्प ने यह भी कहा था कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए अमेरिका के मुस्लिमों पर तगड़ी निगरानी जरूरी होगी।
तब अमेरिकी मीडिया ने उनकी तीखी आलोचना की थी लेकिन ट्रम्प अपने रुख पर कायम रहे थे। यह सच है कि अमेरिका में 9/11 की घटना के बाद औसत अमेरिकी मुसलमानों से डरने और सतर्क रहने लगा था। हालांकि 9/11 की घटना के बाद दुनिया बहुत बदल चुकी है। फिलहाल यह देखने वाली बात है कि अमेरिका का नया राष्ट्रपति कौन बनता है।
(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)
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न्यूज़ एजेंसी/ संजीव पाश
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