आर.के. सिन्हा
अभी कुछ दिन पहले एक खबर मीडिया की सुर्खियों में थी कि भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई अब एशिया की ‘अरबपतियों की राजधानी’ बन गई है। हुरुन इंडिया रिच लिस्ट 2024 के अनुसार, मुंबई में चीन के राजधानी शहर बीजिंग से भी ज़्यादा अरबपति व्यक्ति रहने लगे हैं। भारत में मुंबई के बाद सबसे ज्यादा अरबपति अब दो और महानगरों नई दिल्ली और हैदराबाद में रहते हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि देश में अरबपतियों की तादाद देश में विकास की रफ़्तार के साथ बढ़ती ही रहेगी। अरबपति छोटे शहरों और कस्बों में भी बने। पर भारत को फिलहाल सैकड़ों-हजारों दानवीर भी चाहिए।
भारत, अपने युवा और विविध जनसंख्या के बावजूद , दुनिया की सबसे तेजी से विकसित होने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। हालांकि, फ़िलहाल इसकी समृद्धि असमान रूप से वितरित है। लाखों लोग गरीबी, भुखमरी, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा तक की पहुँच से वंचित हैं। इस असमानता को कम करने और भारत को एक समृद्ध और न्यायपूर्ण राष्ट्र बनाने के लिए अधिक से अधिक दानवीरों की आवश्यकता है। हमें इस तरह के दानवीर चाहिए जो हर साल बड़ी राशि स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्रों में खर्च करें। यह संतोष का विषय है कि बिल गेट्स ने अपनी समृद्धि का उपयोग मानवता की सेवा में किया है। उनके द्वारा स्थापित बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने वैश्विक स्वास्थ्य, शिक्षा और विकास के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया है। भारत में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में बड़ी चुनौतियाँ हैं, जिसमें गरीबों के लिए स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच सीमित है। बेशक, दानवीर स्वास्थ्य सेवा में निवेश करके, नई तकनीकों और दवाओं को विकसित करने में मदद कर सकते हैं। वे गरीबों के लिए स्वास्थ्य सेवा की पहुँच को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पतालों और क्लिनिकों का निर्माण कर सकते हैं।
भारत में शिक्षा प्रणाली में भी सुधार की बड़ी आवश्यकता है। इस क्षेत्र में बहुत सारे दानवीरों को निवेश करना चाहिए। वे शिक्षा के क्षेत्र में निवेश करके, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। समृद्ध दानवीर शिक्षकों के प्रशिक्षण, स्कूलों का आधुनिकीकरण और नए शिक्षण उपकरणों का विकास जैसे क्षेत्रों में निवेश कर सकते हैं। यह कोई नहीं कह रहा है कि हमारे यहां दानवीर शिक्षा या हेल्थ सेक्टर में निवेश नहीं करते। पर इन दोनों क्षेत्रों में शत प्रतिशत सरकार के भरोसे भी तो नहीं रहा जा सकता। सरकार की भी अपनी सीमाएं हैं। इसके साथ ही भारत में गरीबी और असमानता को दूर करने के लिए बड़े पैमाने पर चहुँमुखी सामाजिक विकास की आवश्यकता है। दानवीर गरीबों को रोजगार के अवसर प्रदान करने और उनकी आय बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। वे ग्रामीण विकास, कृषि, स्वरोजगार और महिलाओं के सशक्तिकरण जैसे क्षेत्रों में निवेश कर सकते हैं।
भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से जूझ रहा है। इस स्थिति का सामना करने के लिए हमारे दानवीर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को विकसित करने और पर्यावरण संरक्षण के लिए नवाचारों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। वे जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जल संरक्षण और ज़्यादा पानी अवशोषित करने वाले गेहूँ, धान और गन्ना के उत्पादन छोड़ कर या कम करके परंपरागत मोटे और छोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ावा देने का अभियान चला सकते हैं। एक किलो धान के उत्पादन में जहाँ 8000 लीटर , एक किलो गेहूँ उत्पादन में 10,000 लीटर पानी और एक किलो चीनी के उत्पादन में 28,000 लीटर पानी का व्यय होता है, वहीं एक किलो छोटे अनाज कोदो, कँगनी, कुटकी , साँवा और हरा सावाँ के उत्पादन में मात्र 100 से लेकर 300 तक ही पानी की आवश्यकता पड़ती है। इसी प्रकार, हर तरह के दूरगामी और टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने के लिए भी दानवीर अरबपति पर्यावरणीय संगठनों को समर्थन दे सकते हैं।
मैं अपना ख़ुद का उदाहरण देना चाहूँगा। मैं 1966 से लेकर 1975 में स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गाँधी द्वारा लगायी गई इमरजेंसी के पूर्व तक उस समय भारतवर्ष के दो बड़े मीडिया संस्थानों में से एक में विशेष संवाददाता था। तनख़्वाह थी मात्र 230 रुपए प्रतिमाह। संपादकीय पृष्ठ पर एक लेख लिखने पर प्रति लेख 10 रुपए अलग से मिल जाते थे। लोकनायक जयप्रकाश नारायण की प्रेरणा और आशीर्वाद से भूतपूर्व सैनिकों के पुनर्वास के लिये एक छोटा-सा सेवामूलक कार्य शुरू किया और तीन लाख भूतपूर्व सैनिकों और बेरोज़गार युवक-युवतियाँ को रोज़गार दिया। आज उन संस्थाओं का वार्षिक कारोबार लगभग 13,000 करोड़ का है। संतोषप्रद लाभ भी है। लेकिन, मैं अपने लाभाँश का लगभग 95% अपने पूज्य माता और पिताजी की स्मृति में स्थापित “अवसर ट्रस्ट“ के माध्यम से ज़रूरतमंद लोगों की शिक्षा, चिकित्सा, बिना दहेज विवाह, किसी भी तरह की समाज सेवा करने वाली संस्थाओं की सहायता में खर्च करता हूँ। इससे जो आत्मीय संतुष्टि मिलती है, उसका वर्णन करना संभव नहीं है। धन की गति या तो व्यभिचार के लिये होगी या सद्कार्यों के लिये! अरबपतियों को एक ही रास्ता चुनना होगा। नोटों की गड्डी पर न तो आज तक कोई जला है, न जलेगा। तब बुद्धिमत्तापूर्वक सबको यह सोचना चाहिये कि संचित धन का सदुपयोग करना है या दुरुपयोग ?
नए-नए करोड़पतियों और अरबपतियों को अनुसंधान और विकास में भी निवेश करना चाहिए। ये दानवीर वैज्ञानिक अनुसंधान, तकनीकी नवाचार और नए क्षेत्रों में निवेश करके, भारत को वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्र में नेता बनने में मदद कर सकते हैं। वे नए उद्यमों को शुरू करने और भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था में और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए निवेश कर सकते हैं। इंफोसिस टेक्नोलॉजीज के को-फाउंडर नंदन नीलेकणि शिक्षा के क्षेत्र में बहुत दान देते हैं। उन्होंने कुछ समय पहले इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) बॉम्बे को 315 करोड़ रुपए दान किये। इससे पहले भी, उन्होंने आईआईटी बॉम्बे को 85 करोड़ रुपए दान किया था। यानी अब तक वो आईआईटी बॉम्बे को करीब 400 करोड़ रुपये का दान कर चुके हैं।
दरअसल देश के विभिन्न स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्लायों के सफल छात्रों को अपने शिक्षण संस्थानों की आर्थिक मदद करनी चाहिए। इन संस्थानों को सरकार की मदद के सहारे पर नहीं छोड़ा जा सकता है। अमेरिका में पूर्व छात्र अपने कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की भरपूर मदद करते हैं। पूर्व छात्रों की मदद से ही उनके शिक्षण संस्थानों में रिसर्च और दूसरी सुविधाएं बढ़ाई जा सकती हैं।
नीलकेणी की सबसे बड़ी कामयाबी आधारकार्ड है। देश के हर नागरिक को एक विशिष्ठ पहचान संख्या या यूनिक आइडेंटिफिकेशन नम्बर को उपलब्ध करवाने का विचार उन्होंने ही सफलतापूर्वक चलाया था। इसमें दो राय नहीं कि भारत में नंदन नीलकेणी जैसे दानवीरों की संख्या को बढ़ाना होगा। अजीम प्रेमजी और शिव नाडर जैसे अरबपति दानवीर भी देश के युवाओं को सामाजिक उद्यमिता, सामुदायिक विकास और सामाजिक बदलाव के लिए प्रेरित कर सकते हैं। वे भारत के संसाधनों का प्रभावी उपयोग करके, गरीबी को दूर करने और मानवता की सेवा करने के लिए सहायता भी कर सकते हैं।
कभी-कभी मन उदास हो जाता है कि भारत में दानवीरों की काफी कमी हैं। देखिए भारत में अब भी धनी लोग समाज के लिए धन देने से कतराते हैं। उन्हें लगता है कि उनका टैक्स देना ही काफी है। यह सोच बदलनी होगी। फिर भारत में भ्रष्टाचार व्याप्त है, जिससे लोगों को दान करने के लिए प्रेरित करने में कठिनाई होती है। उन्हें डर लगता है कि उनके दान का गलत उपयोग किया जाएगा। कई मामलों में यह होता भी है। फिर कई लोग दान के बारे में जानकारी नहीं रखते हैं या वे यह नहीं जानते कि वे दान कैसे कर सकते हैं।
इस बीच, यह कहना सही नहीं है कि यूरोप और अमेरिका में भारत से ज़्यादा दानवीर हैं। दानवीरता किसी भी देश या संस्कृति तक सीमित नहीं है। हर जगह अच्छे दिल वाले लोग होते हैं जो दूसरों की मदद करने को तैयार रहते हैं। हर देश के अपने-अपने दान करने के तरीके हैं और हर व्यक्ति की अपनी ज़रूरतें और सीमाएँ होती हैं। दानवीरता किसी भी व्यक्ति की व्यक्तिगत पसंद और क्षमता पर निर्भर करती है, न कि किसी देश या संस्कृति पर। हमारे यहां बहुत से लोग मशहूर खिलाड़ियों और फिल्मी सितारों से शिकायत करते रहते हैं कि वे चैरिटी नहीं करते। हालांकि सच यह है कि कई सेलिब्रिटी अपने दानों के बारे में सार्वजनिक नहीं होने देना चाहते। उनका मानना हो सकता है कि दान करना निजी मामला है और इसे सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने की जरूरत नहीं है। कुछ सेलिब्रिटी किसी विशिष्ट कारण के प्रति सहानुभूति महसूस नहीं करते हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सभी सेलिब्रिटी एक समान नहीं होते हैं। कुछ बहुत दानवीर होते हैं, जबकि कुछ नहीं भी करते हैं। इसलिए, यह मान लेना गलत होगा कि सभी सेलिब्रिटी दान नहीं करते हैं।
(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)
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न्यूज़ एजेंसी/ संजीव पाश
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