अम्बेडकर की पुण्यतिथि पर विशेष
डॉ. लोकेश कुमार
डॉ. भीमराव अम्बेडकर जीवनपर्यन्त हर वर्ग को शोषण से मुक्त कराने के लिए कृत संकल्पित रहे। महिलाओं के उद्धार के लिए बहुत कुछ किया और हिन्दू कोड बिल में महिलाओं को अधिकारों से वंचित करने के विरोध में कानून मंत्री के पद से त्यागपत्र दे दिया था। देशभर में उनकी पुण्यतिथि 6 दिसम्बर को मनाई जाती है। डॉ. अम्बेडकर का कहना था कि कम उम्र में बालिकाओं का विवाह नहीं करना चाहिए, उन्हें शिक्षा देनी चाहिए। शिक्षा के लिए पैसा नहीं होगा तो एक समय का खाना बंद कर, वह पैसा शिक्षा में खर्च करना चाहिए। अम्बेडकर ने स्त्री शिक्षण की शुरुआत अपनी अशिक्षित पत्नी रमाबाई को ककहरा सिखा कर अपने घर से की थी। अम्बेडकर स्त्रियों की स्वतंत्र भूमिका पर प्रतिबंध के सख्त विरोधी थे।
उन्होंने हिन्दू समाज में सम्पत्ति के उत्तराधिकार, निःसंतान होने पर किसी पुत्र या पुत्री के गोद लेने पर पुनः विवाह आदि के संदर्भ में स्त्रियों के साथ भेदभाव करने का विरोध जताया। वे स्त्रियों को सभी लोकतांत्रिक अधिकार प्रदान करना चाहते थे। उनका मत था कि नारी को उसके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता। डॉ. अम्बेडकर ने महिला की स्थिति सुधारने के लिए हिन्दू कोड बिल तैयार कर हिन्दू समाज में क्रांति ला दी थी। अम्बेडकर ने महिला को पति और पिता की सम्पत्ति में हिस्सा दिलाया। बालिग नारी की सहमति के बिना विवाह नहीं हो सकता। वह अपनी सहमति से किसी भी वर्ग एवं जाति के पुरुष के साथ विवाह कर लेती है तो वह विवाह वैध माना जाएगा। पति के अत्याचारों से बचने के लिए विवाह सम्बंध विच्छेद करने का भी अधिकार दिया गया। प्राचीनकाल में अनेक पत्नियां रखने की परंपरा थी। अम्बेडकर ने भारत में एक पत्नी रखने का कानून स्थापित किया। उन्होंने भारतीय संविधान में नारी मुक्ति के लिए अनुच्छेद 15(1) द्वारा लिंग के आधार पर किए जाने वाले भेद को समाप्त किया। नारी को पुरुष के समान सारे राजनीतिक अधिकार प्रदान किए। सविधान के अनुच्छेद 14 ने नारी को पुरुष के समान बराबरी का दर्जा दिलाया और एक समान कार्य के लिए समान वेतन दिलाने की व्यवस्था की।
अम्बेडकर नारी शिक्षा के हिमायती थे। उनका कहना था कि स्त्रियों की प्रगति जितनी मात्रा में हुई होगी, उसके आधार पर मैं उस समाज की प्रगति नापता हूं। भारत का पतन और अवनति का एक प्रमुख कारण नारी अशिक्षा है। नारी को पुरुष के समान शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए। डॉ. अम्बेडकर कहते थे कि प्रत्येक लड़की को शादी के बाद अपने पति के साथ एकनिष्ठ रहना चाहिए। उसके साथ मित्रता और समानता के रिश्ते से बर्ताव करना चाहिए, उसकी दासी नहीं बनना चाहिए। अगर आप इस बात का ध्यान रखकर कार्य करेंगी तो आपको सम्मान और वैभव प्राप्त हुए बिना नहीं रहेगा।
सबसे पहले प्रसूति अवकाश दिलवायाः- डॉ. अम्बेडकर महिलाओं को लोकतांत्रिक अधिकार देने के समर्थक थे। 1942 में काउंसिल (मंत्रिमंडल) के वे सदस्य थे। उन्होंने श्रम मंत्री के रूप में महिला-मजदूरों की मजदूरी बढ़ाने के विशेष उपबंध किए। अम्बेडकर ने कोयला खान में काम करने वाली महिलाओं के प्रसूति अवकाश, स्वास्थ्य, मनोरंजन और काम के घंटे निश्चित किए।
(ब) हिन्दू कोड में महिला को अधिकार प्रदान करनाः- डॉ. अम्बेडकर ने वर्ष 1951 में हिन्दू आचार संहिता अधिनियम के जरिए लैंगिग समानता को बढ़ाना चाहते थे, जिसके लिए महिलाओं को बराबरी का हिस्सा देने की बात कही थी।
अम्बेडकर ने नेहरू के मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने का फैसला किया। इससे पहले अम्बेडकर ने महिलाओं को हिन्दू कोड के माध्यम से बहुत अधिकार दे दिए थे, जो किसी क्रांति से कम नहीं थे।
डॉ. अम्बेडकर ने संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों से नारी की स्थिति में सुधार तो अवश्य हुआ किन्तु सामाजिक प्रगति में वह सार्थक भूमिका निभाने में समर्थ हो सके, इसके लिए उसकी कतिपय सामाजिक, आर्थिक निर्योग्यताओं को दूर करना आवश्यक था। अम्बेडकर कानून मंत्री की स्थिति का लाभ उठाते हुए इस कमी को दूर करने का निर्णय लिया। उनका मानना था कि सुधार की सबसे अधिक जरूरत सामाजिक विधान के क्षेत्र में है क्योंकि इस क्षेत्र में हम बहुत पिछड़े हुए हैं। तदनुसार संविधान निर्माण के तुरंत बाद उन्होंने सामाजिक विधान की रचना का कार्य हाथ में लिया और हिन्दू कोड बिल बनाया। कोड का अर्थ है, किसी कानून या विधि का एकीकरण। हिन्दू कोड का तात्पर्य है-हिन्दुओं के इधर-उधर शास्त्रों में बिखरे पड़े अथवा शताब्दियों से चली आ रही ऐसी रूढ़ियों को, जो कानून से भी अधिक बलवती हो रही हैं, किंतु उनकी अब कुछ भी उपादेयता दिखाई नहीं देती वरन हिन्दू समाज के लिए घातक सिद्ध हो रही हैं। हिन्दू कोड बिल में पुराने विधानों की जगह नए सुधारपूर्ण विधि-विधान बनाए गए।
इस कोड में पति के मर जाने पर हिन्दू स्त्री को पति की सम्पत्ति में उसकी संतान के बराबर हिस्सा या अंश देने का नियम बनाया गया। पहले हिन्दू धर्मशास्त्रों में विधवा के लिए न तो दूसरी शादी का विधान था और न ही जायदाद में हिस्सा मिलता था। हिन्दू कोड के अनुसार यह कानून भी बना दिया गया था। अब न केवल लड़का ही दत्तक बन सकता था, बल्कि लड़की भी दत्तक ली जा सकती थी। यह भी प्रावधान कर दिया गया था कि अब वृद्ध माता-पिता का भरण-पोषण लोक-लाज के डर की वजह से नहीं बल्कि कानूनी तौर पर करें। डॉ. अम्बेडकर के मंत्री पद से त्यागपत्र देने के बाद हिन्दू कोड बिल टुकड़ों में पास हुआ। लेकिन यह कहा जा सकता है कि उसके महिलाओं के अधिकार देने वाला हिन्दू कोड बिल की नींव डॉ. अम्बेडकर की ही देन है। संविधान निर्माण में भी उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। वे बहु प्रतिभा के धनी थे। बहरहाल, यही कहा जा सकता है कि महिलाओं को अधिकार देकर डॉ. अम्बेडकर ने विश्वभर में एक नजीर पेश की थी। भारत में आजादी के साथ डॉ. अम्बेडकर ने महिलाओं को मतदान का अधिकार दे दिया था लेकिन अमेरिका ने अपनी देश की आजादी के 133 साल बाद 1920 में महिलाओं को मतदान का अधिकार दिया था।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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न्यूज़ एजेंसी/ रोहित
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