भारतीय संस्कृति में विजयादशमी, जिसे दशहरा के नाम से भी जाना जाता है, को असुर शक्तियों पर देव शक्तियों की विजय का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व हर साल आश्विन शुक्ल दशमी को मनाया जाता है और इसे अक्षय स्फूर्ति, शक्तिपूजा एवं विजय प्राप्ति के दिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को शुभ कार्यों के आरंभ के लिए सबसे उत्तम माना गया है।
विजयादशमी का पौराणिक महत्त्व
विजयादशमी के दिन ही देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था, जिससे यह पर्व अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक बन गया। त्रेतायुग में, श्रीराम ने इसी दिन लंका के राजा रावण का वध कर अपने संघर्ष को सफल बनाया। द्वापर युग में, भगवान श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में पांडवों ने अपने शस्त्रों का पुनः धारण कर युद्ध में विजय प्राप्त की।
छत्रपति शिवाजी द्वारा सीमोल्लंघन
कलियुग में, छत्रपति शिवाजी महाराज ने इस दिन सीमोल्लंघन की परंपरा का आरंभ कर हिंदू स्वराज की स्थापना की। शिवाजी का यह कदम हिंदू राष्ट्र को संगठित करने और सुरक्षा के प्रति जागरूकता लाने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जाता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना
विजयादशमी के दिन ही, 27 सितंबर 1925 को डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। इस वर्ष विजयादशमी पर संघ अपने 100वें स्थापना वर्ष में प्रवेश कर रहा है, जो भारतीय संस्कृति और हिंदुत्व के संरक्षण का प्रमुख प्रतीक है। संघ की स्थापना के समय से ही हिंदू समाज के संगठित होने का विचार प्रवाहित किया गया है।
हिंदुत्व की रक्षा और जागरूकता
संघ का उद्देश्य हिंदुत्व की सुरक्षा करना और भारतीय संस्कृति का संरक्षण करना है। वर्तमान में, संघ की शाखाएं पूरे देश में हिंदू समाज को संगठित करने और राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए सक्रिय हैं।
संघ का वैश्विक प्रभाव और महत्व
आज, संघ की प्रेरणा से भारत विश्व में अपनी पहचान बना रहा है। आर्थिक, सांस्कृतिक और सामरिक दृष्टिकोण से भारत ने कई देशों को पीछे छोड़ा है। यह विकास केवल भारत के हित के लिए नहीं, बल्कि समस्त विश्व की भलाई के लिए है, क्योंकि भारत वसुधैव कुटुंबकम की भावना में विश्वास रखता है।
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विजयादशमी: धर्म की विजय का पर्व और संघ की स्थापना का दिन
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