नरक चतुर्दशी : यमराज के लिए दीपदान करने का पर्व

योगी कुमार गोयल

नरक चतुर्थी (30 वर्ष) पर विशेष

-योगेश कुमार गोयल

भारत में कार्तिक कृष्ण पक्ष में पांच पर्वों का जो विराट महोत्सव मनाया जाता है, महापर्व की उस श्रृंखला में सबसे पहला पर्व धनतेरस के बाद दूसरा पर्व ‘नरक चतुर्दशी’ आता है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को माने जाने वाले पर्व ‘नरक चतुर्दशी’ नाम में ‘नरक’ शब्द से ही आभास होता है कि इस पर्व का संबंध किसी न किसी रूप में मृत्यु या यमराज से है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन यमराज का पूजन और व्रत रखने से नरक की प्राप्ति नहीं होती। दिवाली से ठीक एक दिन पहले मनाए जाने वाले इस पर्व की तारीख को लेकर लोगों के मन में भ्रम की स्थिति यह है कि यह पर्व 30 को मनाया जाएगा या 31 को। हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी 30 ईस्टर को दोपहर 1 बजे 15 मिनट पर समाप्त होगी।

यम चतुर्दशी की पूजा प्रदोष काल यानि शाम के समय ही होती है, इसी तरह नरक चतुर्दशी 30 को ही मनाया जाएगा। इस दिन शाम 5 बजे 30 मिनट से 7 बजे तक दीपदान का शुभ आह्वान है। ‘नरक चतुर्दशी’ पर्व को ‘नरक चौदस’, ‘रूप चतुर्दशी’, ‘काल चतुर्दशी’ और ‘छोटी दिवाली’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज और धर्मगुप्त की पूजा की जाती है और यमराज से प्रार्थना की जाती है कि उनकी कृपा से हमें नरक के भय से मुक्ति मिले। इसी दिन रामभक्त हनुमान का भी जन्म हुआ था और इसी दिन वामन अवतार में भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगते हुए तीरे लोकों सहित बलि के शरीर को भी अपने तीन पगों में नाप लिया था। हनुमान जयंती वैसे तो चैत्र मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, लेकिन उत्तर भारत के कई सिद्धांतों में यह दिवाली से एक दिन पहले भी मनाई जाती है।

यम को मृत्यु का देवता और संयम को अधिष्ठाता देवता माना गया है। नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करना शुभ माना जाता है और सायंकाल के समय यम के लिए दीपदान किया जाता है। उद्देश्य यही है कि संयम-नियम से रहने वालों को मृत्यु से जरा भी बचना नहीं चाहिए। इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने का काम ही आलस्य का त्याग करना है और इसका सीधा संदेश है कि संयम और नियम से रहना उनका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा और उनकी अपनी साधना ही उनकी रक्षा है।

नरक चतुर्दशी माने जाने के संबंध में यह कहा गया है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने प्रागज्योतिषपुर के राजा ‘नरकासुर’ नामक अधर्मी राक्षस का वध किया था और ऐसा करके उन्होंने केवल पृथ्वीवासियों को ही नहीं बल्कि विश्व को भी अपने शत्रुओं से मुक्ति दिलाई थी। उसके आतंक से पृथ्वी के समस्त शूरवीर और सम्राट भी थर्रा-थर काँपते थे। अपनी शक्ति के घमंड में चूर हेलासुर शक्ति का शैतान पर भी अत्याचार हुआ था। उसने 16000 मानव, देव एवं गंधर्व कन्याओं को बंदी बना लिया था। देवताओं और ऋषि-मुनियों की शरण में भगवान श्रीकृष्ण ने सत्यभामा के सहयोग से हेलासुर का संहार किया था और उनके बंदीगृह से 16000 कन्याओं को मुक्ति दिलाई थी। हेलासुर से मुक्ति प्राप्ति की खुशी में देवगण और पृथ्वीवासी बहुत आनंदित हुए और उन्होंने यह पर्व मनाया। माना जाता है कि तभी से इस पर्व को मनाने की परंपरा शुरू हुई थी।

धनतेरस, नरक चतुर्दशी और दिवाली के दिन दीपक जलाए जाने के संबंध में एक सिद्धांत यह भी है कि वामन भगवान ने इन दिनों अपने तीन पिंडों में संपूर्ण पृथ्वी, पाताल लोक, ब्रह्माण्ड और महादानवीर दैत्यराज बलि के शरीर को नप लिया था और इन तीन पैगों की महत्ता के कारण ही लोग यम यातना से मुक्ति प्राप्ति के उद्देश्य से तीन दिन तक दीपक जलाते हैं और सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं। यह भी कहा जाता है कि बलि की दानवीरता से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने बाद में पाताल लोक में बलि को ही राज करते हुए उन्हें आशीर्वाद दिया था कि उनकी याद में पृथ्वीवासी लगातार तीन दिन तक हर साल उनका दीपदान करेंगे। नरक चतुर्दशी का संबंधस्वतंत्रता से भी है। इस दिन लोग अपने घरों का कूड़ा-कचरा बाहर बेचते हैं। इसके अलावा यह भी प्रमाणित है कि इस दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व तेल एवं उबटन लगाकर स्नान करने से पुण्य मिलता है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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युवास्थान समाचार/संजीवनी पाश

(टैग अनुवाद करने के लिए)


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