कोलकाता, 13 अक्टूबर (न्यूज़ एजेंसी)। शनिवार को दशमी के साथ ही पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा का उत्सव लगभग समाप्त हो जाता है। इस दिन से ही प्रतिमाओं के विसर्जन की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। कोलकाता में आयोजित लगभग चार हजार दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन रविवार को शुरू होगा। लेकिन इस दिन राज्य में सिंदूर खेल का एक अनोखा रिवाज है, जो राज्य की दुर्गा पूजा को देशभर से अलग पहचान देता है।
सिंदूर खेल की ऐतिहासिक परंपरा
सैकड़ों वर्षों से राज्य के जमींदार घरानों और राजवाड़ों में मां दुर्गा की पूजा धूमधाम से होती आई है। वर्षों पहले इस सिंदूर खेल की परंपरा शुरू हुई थी। इस खेल में पूजा मंडप और आसपास की महिलाओं के साथ ही उन घरों में, जहां मां की प्रतिमा स्थापित की गई है, बड़ी संख्या में सुहागिनें अपने रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाला सिंदूर मां के चरणों में अर्पित करती हैं।
महिलाएं और उनका उत्साह
सिंदूर खेल की इस परंपरा में महिलाएं न केवल मां दुर्गा की पूजा करती हैं, बल्कि इस अवसर पर अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना भी करती हैं। इसके बाद, उसी सिंदूर से अन्य सुहागिन महिलाओं की मांग भरी जाती है और अबीर की तरह गालों पर भी लगाया जाता है। महिलाएं इस दौरान नाचती-गाती और झूमती हैं, जिससे मां दुर्गा की विदाई का यह पर्व और भी खास बन जाता है।
विशेष तैयारियां और रिवाज
रविवार को कोलकाता समेत पूरे राज्य में सिंदूर खेल की धूम रहेगी। महिलाओं ने पहले से ही तैयारियां शुरू कर दी हैं। हटखोला के दत्त बाड़ी में अष्टमी के दिन ही सिंदूर खेल संपन्न हो गया था। हालांकि, कोलकाता के अन्य जमींदार घरानों जैसे शोभाबाजार राजबाड़ी, बनर्जी बाड़ी और बोस परिवार में बड़े पैमाने पर सिंदूर खेल की तैयारियां शनिवार रात से ही शुरू की गई हैं। महिलाएं इस दिन के लिए विशेष सिंदूर और पहनने के कपड़े पहले से ही तैयार रख चुकी हैं।
समर्पण और श्रद्धा का पर्व
राजश्री घोष नाम की एक महिला ने बताया कि दुर्गा पूजा के अंत में होने वाला सिंदूर खेल महिलाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इसके माध्यम से वे मां दुर्गा के आशीर्वाद से अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती हैं। यह खेल बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ खेला जाता है। रविवार सुबह से ही इसकी शुरुआत हो जाएगी।
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